कैसे कह दूं कि उस शख्स से नफरत है मुझे
घर के सामने से अपनी पुरानी साइकिल से गुजर रहे भूखन डाकिया दरवाजे के पीछे से प्रीतो की आवाज सुन के एक पल के लिये रुक गए....चश्मे के कोने को आँखों पर सही करके वह चिट्ठियों का बंडल देखने लग जाते है..... एक मिनट बाद बड़ी निराशा के साथ वह प्रीतो से कहते है.... न बच्चा आज भी तेरी कोई चिट्ठी नही आई....कितनी बार देवी लाल को बोला की शहर जाकर पता करें की आखिर क्या बात है दो महीने हो गए अभी तक रमेश का कोई हाल चाल न मिला...!
डाकिया बाबा... बाबू को आने दीजिये....मै उनसे शहर जाने की बात करुँगी.... रमेश जी तो मेरे लिखी चिट्ठियों का भी जबाब नही दे रहे है....!
यह कहकर प्रीतो घर के किवाड़ बन्द कर लेती है...आँसुवो से गंगा जमुना बहने लगती है..... उसे याद आता है जब पहली बार रमेश शहर जा रहा था तो वह कितना रोई थी....रमेश के समझाने पर की हर महीने वह एक चिट्टी और मनीआर्डर याद से भेज दिया करेगा...यह सुनकर उसके जान में जान आई थी...हर महीने चिट्ठी जब आती तो प्रीतो को यही लगता की रमेश उन चिट्ठियों के साथ आ गया है... हफ़्तों वह उन चिट्ठियों को कलेजे से लगाये फिरा करती थी....रमेश के पैसे से घर भी ठीक ठाक चलने लगा था....बूढे पिता की दवाई और बाकि जरूरतों का इंतजाम अब आसानी से होने लगा था...रमेश चिट्ठियों में जब अपनी तरक्की और पगार बढ़ने की बात लिखता तो प्रीतो के मन को बड़ा आराम मिलता....काली माई भोले बाबा की हर दिन की गयी पूजा का फल मिल रहा है ऐसे सोच प्रीतो हर दिन भगवान का नाम लिया करती....!
दो सालों तक यह क्रम बराबर चला...पर जब पिछले दो महीने से रमेश का कोई समाचार न मिला और न ही उसका कोई मनीआर्डर आया तो प्रीतो और उसके बाबू के माथे पर चिंता की लकीर खिंच गयी....!
वक्त का यह वह दौर था जब परदेशियों की खोज खबर इन चिट्ठियों से ही मिला करती थी....चिट्ठियों का न आना मतलब कही न कही कोई दिक्कत हैं...!
रमेश के भेजे पेसे अब खत्म होने लगे थे और घर खर्च भी बड़ी मुश्किल से चल रहा था....!
एक दिन शाम में जब प्रीतो बोली की बाबू जी हमे शहर जाकर पता करना चाहिये की आखिर बात क्या है तो इस बात के लिये देवी लाल तैयार हो जाते है... प्रीतो अपनी पायल गांव के सोनार के पास गिरवी रख के कुछ पेसे ले आती है....एक दो दिन में वो लोग शहर जाने की तैयारी में अपना समान बांधने लग जाते है....!
अगली सुबह जब डाकिया बाबू घर आते है तो उनके हाथ में रमेश की चिट्टी होती है.... रमेश की चिट्टी आई है जानकर प्रीतो ख़ुशी से झूम उठती है....झट से लिफाफे को खोल वह उसे पढ़ने लग जाती हैं....!
प्रिय प्रीतो
मुझे पता है तुम मुझसे नराज हो पर क्या करूँ मै यहाँ ऐसी उलझन में फसा हुआ था की मुझे चिट्टी लिखने का समय ही न मिला....आज जो मै सच्चाई तुम्हे बताने जा रहा हूँ उसे सुनकर शायद तुम मुझे कभी माफ़ न करो पर आज यह बताना भी बेहद जरूरी हो गया हैं....प्रीतो मै यहाँ जिस मकान में रहता हूँ उसके मकान मालिक का कुछ महीनें पहले निधन हो गया था....मकान मालिक के न रहने पर मेरा झुकाव मालकिन की तरफ हो गया....वह मेरे खर्चे और सब जरूरत को पूरी करने लगी....मै भी उसके मोह पाश में बंधता चला गया....मुझे पता है की मेरी कुछ जिम्मेदारी आपके लिये और पिता जी के लिये भी हैं.....इसलिये हर महीने मै बिना नागा किये घर पर मनीआर्डर देता रहूँगा....पिता जी को यह बात न बोलना वह यह सदमा झेल न सकेंगे...!
तुम्हारा ही
रमेश
चिट्टी में लिखी एक एक लाइन प्रीतो के कलेजे को अंदर तक चीरती हुई चली गयी....वह भरभरा के गिरने ही वाली थी की बाहर से देवी लाल की आवाज आती हैं...!
क्या हुआ बहू.. रमेश ने चिट्टी में क्या लिखा हैं....?
अपने बह चले आँसुओ को पोछ प्रीतो कहती है...!
बाबू जी वह अच्छी तरह से हैं.... कम्पनी के काम से दो तीन साल के लिये बाहर जाने वाले है....आना न हो सकेगा पर हर महीने पेसे और चिट्ठियां देते रहेगें....!
शाम को चूल्हे पर रोटी बना रही प्रीतो मन ही मन सोच रही है बाबू जी की तबियत जिस हिसाब से गड़बड़ चल रही है वो ज्यादा दिन रहेगें नही...बेहतर होगा की यह बात उन्हें न ही पता चले...बुढ़ापे का शरीर शायद यह बात सुन न सकेगा...!
बूढे पिता का जीवन और .घर को बचाने के लिये प्रीतो ने चिट्टी में लिखे सच को चुपचाप स्वीकार लिया था....अलमारी के कोने पर रखी वो चिट्टी उसे जिंदगी के नये सच से वाकिफ करा रही थी जिसे उसे चुप रहकर ही झेलना हैं....!
दो सालों तक यह क्रम बराबर चला...पर जब पिछले दो महीने से रमेश का कोई समाचार न मिला और न ही उसका कोई मनीआर्डर आया तो प्रीतो और उसके बाबू के माथे पर चिंता की लकीर खिंच गयी....!
वक्त का यह वह दौर था जब परदेशियों की खोज खबर इन चिट्ठियों से ही मिला करती थी....चिट्ठियों का न आना मतलब कही न कही कोई दिक्कत हैं...!
रमेश के भेजे पेसे अब खत्म होने लगे थे और घर खर्च भी बड़ी मुश्किल से चल रहा था....!
एक दिन शाम में जब प्रीतो बोली की बाबू जी हमे शहर जाकर पता करना चाहिये की आखिर बात क्या है तो इस बात के लिये देवी लाल तैयार हो जाते है... प्रीतो अपनी पायल गांव के सोनार के पास गिरवी रख के कुछ पेसे ले आती है....एक दो दिन में वो लोग शहर जाने की तैयारी में अपना समान बांधने लग जाते है....!
अगली सुबह जब डाकिया बाबू घर आते है तो उनके हाथ में रमेश की चिट्टी होती है.... रमेश की चिट्टी आई है जानकर प्रीतो ख़ुशी से झूम उठती है....झट से लिफाफे को खोल वह उसे पढ़ने लग जाती हैं....!
प्रिय प्रीतो
मुझे पता है तुम मुझसे नराज हो पर क्या करूँ मै यहाँ ऐसी उलझन में फसा हुआ था की मुझे चिट्टी लिखने का समय ही न मिला....आज जो मै सच्चाई तुम्हे बताने जा रहा हूँ उसे सुनकर शायद तुम मुझे कभी माफ़ न करो पर आज यह बताना भी बेहद जरूरी हो गया हैं....प्रीतो मै यहाँ जिस मकान में रहता हूँ उसके मकान मालिक का कुछ महीनें पहले निधन हो गया था....मकान मालिक के न रहने पर मेरा झुकाव मालकिन की तरफ हो गया....वह मेरे खर्चे और सब जरूरत को पूरी करने लगी....मै भी उसके मोह पाश में बंधता चला गया....मुझे पता है की मेरी कुछ जिम्मेदारी आपके लिये और पिता जी के लिये भी हैं.....इसलिये हर महीने मै बिना नागा किये घर पर मनीआर्डर देता रहूँगा....पिता जी को यह बात न बोलना वह यह सदमा झेल न सकेंगे...!
तुम्हारा ही
रमेश
चिट्टी में लिखी एक एक लाइन प्रीतो के कलेजे को अंदर तक चीरती हुई चली गयी....वह भरभरा के गिरने ही वाली थी की बाहर से देवी लाल की आवाज आती हैं...!
क्या हुआ बहू.. रमेश ने चिट्टी में क्या लिखा हैं....?
अपने बह चले आँसुओ को पोछ प्रीतो कहती है...!
बाबू जी वह अच्छी तरह से हैं.... कम्पनी के काम से दो तीन साल के लिये बाहर जाने वाले है....आना न हो सकेगा पर हर महीने पेसे और चिट्ठियां देते रहेगें....!
शाम को चूल्हे पर रोटी बना रही प्रीतो मन ही मन सोच रही है बाबू जी की तबियत जिस हिसाब से गड़बड़ चल रही है वो ज्यादा दिन रहेगें नही...बेहतर होगा की यह बात उन्हें न ही पता चले...बुढ़ापे का शरीर शायद यह बात सुन न सकेगा...!
बूढे पिता का जीवन और .घर को बचाने के लिये प्रीतो ने चिट्टी में लिखे सच को चुपचाप स्वीकार लिया था....अलमारी के कोने पर रखी वो चिट्टी उसे जिंदगी के नये सच से वाकिफ करा रही थी जिसे उसे चुप रहकर ही झेलना हैं....!
रात में बिस्तर पर अकेले पड़ी हुई जब वह पुरानी डायरी के पन्ने पलट रही थी तो उसे कभी अपनी लिखी लाइन ही दिख गयी..!
महोब्बत मुक्कदर है कोई खवाब नहीं,ये वो अदा है जिसमें सब कामयाब नहीं,जिन्हें पनाह मिली उन्हें उंगलियों पे गिनो,जो बर्बाद हुऐ उनका हिसाब नहीं... !!
कैसे कह दूं कि उसी शख्स से नफरत है मुझे !
वही जो शख्स मेरे ख्वाब तोड़ देता है,
वही उन ख्वाबों के होने का पर सबब भी है...
मेरी हयात के पुर्जे बिखेरने वाला,
मेरी साँसों को सजाने कावो ही ढब भी है...
मैं चाहता नहीं परजिसकी जरूरत है मुझे !
कैसे कह दूं कि उसी शख्स से नफरत है मुझे !
मुहब्बत मुक़द्दर है कोई खवाब नहीं,ये वो अदा है जिसमें सब कामयाब नहीं,जिन्हें पनाह मिली उन्हें उंगलियों पे गिनो,जो बर्बाद हुऐ उनका हिसाब नहीं... !!
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